Tuesday, 28 June 2011

पता नहीं

पता नहीं 
पता नहीं क्यूँ मैं मुस्कुरा कर चल दिया

दिल चाहता था की रोयें  
पर खिलखिलाकर हंस दिया

हर टुकड़े की कसक को दबा कर चल दिया 
ज़िन्दगी की ताल पे ताल मिला कर चल दिया 

उनकी आँखों के सितारों को संजो कर चल दिया 
हंसी को उनके लबों का रास्ता दिखा कर चल दिया 

रुकना तो बोहुत चाहते थे पर, ये बता बता कर चल दिया 
न आपने रोका हमें, कैसे बताये किस कदर दिल कुचल दिया 

Monday, 20 June 2011

un-hinged...


hinged on point some where some how
waiting to be unhinged? not really...

or may be to wrap overall
and it happened...! shattering...it apart
into nowhere...



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