कुछ ऐसा लगा जैसे मरहम रख दिया गया हो
उस बहते नासूर पे , जो था बह रहा मुद्दतों से
और डूबने लगे हम गहराइयों में
उस अहसास की, जो था दफ़न कहीं
चल पड़ा तूफ़ान उन ज़ज्बातों का
अपनी उन मंजिलों की ओर
जहाँ होना था उसे फ़ना
बाँहों में किनारों के....