स्पर्श कहता है कुछ
कभी अनकहा, कभी अनचाहा
कभी अनजाना, कभी वीभत्स
कभी खुरदुरा रेत के दानों सा
कोमल फूल की पंखुड़ी सा
आंसुओं सा नम, कभी, रक्त सा
मवाद बह न पाया बन दर्द
किसी के ह्रदय से कभी
सड़ने वाली उस हर लाश सा
या वृक्ष हो पलाश सा
स्पर्श कहता है कुछ
हाँ ! स्पर्श, वही स्पर्श।