Wednesday 14 May 2014

लफ्ज़

हमें है आपके अश्क़  नापसंद  
और  कमबख्त हम ही उनकी वजह बन जाते है  
इसे ज़िन्दगी कहे या कहे कोइ अफ़साना 
आप हमें आज भि उतने हि हसीँ नजर आते हैं  

हम आपकी पलकोँ के पानी कि चिंता में खोये थे 
और आपने इस कायनात के हालात पूछ लिये हमसे 
जैसे उन्हे नसीब है जन्नतो कि खिलखिलाहट 

 लफ्ज़ ऐसे कह गये 
कुछ कम कि कुछ ज्यादा कह गये 
दिल है कि मानता नहि 
 आप हमें दीवाना कह गये 

मुस्कराहट आपकी अगर बरक़रार है 
हमारे जनाजे से अगर 
कह दिया होता हमें 
रोज़ शाम कन्धा देने बुलवा लेते आपको 

Saturday 3 May 2014

सोच

कागज कि नाव जैसे उन लहरों पे  
 इठलाती, बलखाती, मदमस्त सी 

स्वछंद, बतियाती हवाओं से 
कुछ कहती कुछ सुनती 

अपने डर को छुपाती 
डूब जाने के उन्ही लहरों में 

जैसे ना चाहती हो
जाने कोइ 

धड़कता है दिल 
जोरों से कुछ इस तरह 

की साथ छोड़ देगा 
बस इस लहर के बाद 

और लहर दर लहर 
कुछ इसी तरह ज़िन्दगी 

गुजरती रही, हमने सोचा 
क्या पता था कि वोह हम थे जो रहे थे गुजर.... 




Message by Blog Owner

This is a Personal Blog.

Views and opinions expressed here are totally personal of respective writer or commentator.

All Images Courtesy (unless and until specified otherwise) : Google Images

"N"counting...