Saturday 30 April 2016

स्पर्श

स्पर्श कहता है कुछ 
कभी अनकहा,  कभी अनचाहा 

कभी अनजाना, कभी वीभत्स 
कभी खुरदुरा रेत के दानों सा 

कोमल फूल की पंखुड़ी सा 
आंसुओं सा नम, कभी, रक्त सा 

मवाद बह न पाया बन दर्द 
किसी के ह्रदय से कभी 

सड़ने वाली उस हर लाश सा 
या वृक्ष हो पलाश सा 

स्पर्श कहता है कुछ 
हाँ ! स्पर्श, वही स्पर्श। 

Saturday 9 April 2016

अक्स

अक्स था शायद
हॉं, और अक्स ही है

पता नहीं किसका
शायद, कल्पनाओं का?

टूटती हुई, नहीं नहीं
अदृश्य होती

वास्तविकता की 
रोशनी से

पर क्या ये वास्तविकता 
वास्तविक है?

या है क्षण भंगुर
कल्पना की तरह!

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