Wednesday, 18 October 2017

गुफ़्तगू

क्या कहें  क्या ना कहें,
कुछ इसी गुफ़्तगू में हैं हम|

 आपसे नहीं अपने,
लफ़्जों से ख़फ़ा हैं हम |

समझना औ समझाना ,
हमारे बस में नहीं शायद

मुहब्बत पे ज़िंदा रहें ,
यही ताक़ीद होता है |

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