क्या कहें क्या ना कहें,
कुछ इसी गुफ़्तगू में हैं हम|
आपसे नहीं अपने,
लफ़्जों से ख़फ़ा हैं हम |
समझना औ समझाना ,
हमारे बस में नहीं शायद
मुहब्बत पे ज़िंदा रहें ,
यही ताक़ीद होता है |
कुछ इसी गुफ़्तगू में हैं हम|
आपसे नहीं अपने,
लफ़्जों से ख़फ़ा हैं हम |
समझना औ समझाना ,
हमारे बस में नहीं शायद
मुहब्बत पे ज़िंदा रहें ,
यही ताक़ीद होता है |