Thursday, 28 June 2018

दर्द

शायद
यही है

शायद
ऐसे ही है

नियति
हाँ, वही

नियति
जिसमें दर्द है

बेइन्तेहाँ
दर्द

हर पल में
हर लम्हे में
बस
दर्द

कायनात के उस
ज़र्रे में
जहाँ
हम चाहते हैं
की ना हो



दर्द
वहां है तो बस
दर्द.........

Friday, 20 April 2018

स्पर्श

स्पर्श, आँखों से किया हमने उन्हें 
रोम से रोम तक, यहाँ वहां, जहाँ तहाँ 

गुलाबी पंखुड़ियों ये काली घटाओ तक 
सुंदरता से सुंदरता तक 

वक़्त के पद चिन्हों से 
समंदर की गहराइयों तक 

स्पर्श से स्पर्श 
करने की कोशिश 

पल में अनंत को 
जीने की कोशिश 

अंतर्मन से अंतस तक 
पहुंचने की कोशिश

नश्वर से अमर्त्य तक 
स्पर्श, अस्पर्श को एक ही पल में जीवंत,,आह,,,अहा,,,,,अद्भुत !

Thursday, 12 April 2018

in the times of hopelessness

frigid, is the feeling of skin, desired
with scaling layers of blood smeared 


burn, not physical, cover whole soul

and they said its un-burnable 


vindictive eyes bare it all

parched, without hope of gaze


cracking spouts, in licked creases

pleading, to drenches in gashing 

dried are nostrils, hurts to breath
heart is still.................so still

to hear if she is there...
if she calls his name.... at all.. may be... perhaps...!

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