कुछ अल्फाज़ से दफ़न है
या है ये मजार उन लम्हों की
जहाँ है उनकी खुशबुएँ ज़ब्त
हर दरख्त के साये में
रौशनी जो है छन के आती
पत्तों से लुक छिप कर उन पत्थरों पे
जैसे हो कोई जज्बा लिए
उन्हें आगोश में लेने का
या है ये मजार उन लम्हों की
जहाँ है उनकी खुशबुएँ ज़ब्त
हर दरख्त के साये में
रौशनी जो है छन के आती
पत्तों से लुक छिप कर उन पत्थरों पे
जैसे हो कोई जज्बा लिए
उन्हें आगोश में लेने का