कतार में न थे हम कभी
हैं तो बस इंतज़ार में
कुछ ऐसे लफ़्ज़ों के जो कहीं दफ़न से है
ज़हन में किसी के इस क़दर
की निकलना उनका हो गया मुश्किल
और सासें हो गयी हमारी खुश्क , जुबान के संग
he : I can understand if feelings are not mutual between us
she : why do you say so?
he : you never said what you felt.
she : how does help you or situation?
he ( amused with knack of not answering straight forward as it was his forte always, well almost) : It helps me to know, if you could just say without cross questioning.
she said something...
and never answer the question.
खुश्की लगता है ताउम्र न जाएगी
अपने साथ हमें भी ले जाएगी
हम भी कुछ बेजार से हो चले है मिठास से
इस क़दर की , नीम का अर्क घुलवा दिया है शहद में