कुछ अल्फाज़ कहने थे हमें
पर मालूम हुआ वो कम थे
चंद लम्हात मुक्कमल होते शायद
उसमें भी कुछ जतन थे
आपको मुबारक हो हर पल और बात
हम भी सोचेंगे बस यही है जो,
मय्यसर है खाक ए गम में
गिनते रहिएगा हर मुलाकात
तब शायद लगे ज़िन्दगी में कुछ कम है ..
पर मालूम हुआ वो कम थे
चंद लम्हात मुक्कमल होते शायद
उसमें भी कुछ जतन थे
आपको मुबारक हो हर पल और बात
हम भी सोचेंगे बस यही है जो,
मय्यसर है खाक ए गम में
गिनते रहिएगा हर मुलाकात
तब शायद लगे ज़िन्दगी में कुछ कम है ..
P.S.: Originally Posted here as comment.
6 comments:
Aapke alfazon ne humein bealfaz kar diya. Ab tareef kin shabdon me karun..
ye toh aapka baddpan hai ...:)
This poem totally gets divided into two parts.
आपको मुबारक हो हर पल और बात Till these lines it feels something and from underneath something else.
But whole of it is a nice composition.
Well, thanks for stopping by.
it was good to know something of your feel.
This poem made me crippled emotionally.And drained out my thought process.
crippled,
kya kare ho jata h ....
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