और बह उठा वो दर्द, भावों में
जो था क़ैद हृदय में
हर अश्रु के साथ
बहता अविरल, अदृश्य
इक उम्मीद है कहीं
उस अंधेरे कोने में
उम्मीद कहूँ या चाह
या फिर कोइ नया है ये भाव
अगर कुछ है पता
तो यही कि
कुछ नहीं है
कुछ है अधिक मास!!
जो था क़ैद हृदय में
हर अश्रु के साथ
बहता अविरल, अदृश्य
इक उम्मीद है कहीं
उस अंधेरे कोने में
उम्मीद कहूँ या चाह
या फिर कोइ नया है ये भाव
अगर कुछ है पता
तो यही कि
कुछ नहीं है
कुछ है अधिक मास!!
2 comments:
After reading this a feeling of Deja-vu is what I feel.
Kuch cheeze hume asmanjas mein daal deti hain..kya karein..kuch kare bhi ya nahi..bas iss pal mein rahe..hasein ya roye..
Bas thik waisi si hi sthiti bayan kar rahi hai apki ye rachna..
कुछ अपभ्रंश शब्दों को रचना कह दिया आपने!!
Post a Comment