Wednesday, 14 May 2014

लफ्ज़

हमें है आपके अश्क़  नापसंद  
और  कमबख्त हम ही उनकी वजह बन जाते है  
इसे ज़िन्दगी कहे या कहे कोइ अफ़साना 
आप हमें आज भि उतने हि हसीँ नजर आते हैं  

हम आपकी पलकोँ के पानी कि चिंता में खोये थे 
और आपने इस कायनात के हालात पूछ लिये हमसे 
जैसे उन्हे नसीब है जन्नतो कि खिलखिलाहट 

 लफ्ज़ ऐसे कह गये 
कुछ कम कि कुछ ज्यादा कह गये 
दिल है कि मानता नहि 
 आप हमें दीवाना कह गये 

मुस्कराहट आपकी अगर बरक़रार है 
हमारे जनाजे से अगर 
कह दिया होता हमें 
रोज़ शाम कन्धा देने बुलवा लेते आपको 

4 comments:

Unknown Wanderer said...

Lafz-ae-gulab. .
Har anuchedd mein alag adakari hai. .

Insignia said...

:-)

Makk said...

@unknown wanderer

अदाकारी तो आपके अंदाज-ए-बयां में है।

Makk said...

@insignia

You got this one??

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