Monday, 2 February 2015

सोच

कुछ न कहा था हमने
ना की कुछ शिकायत

बस सुन रहे थे 
हर पल में घुली वीरानियत

सोचा था कि शायद ऐसे ही सही
कुछ तो दर्द बँटेगा

अपना न सही
उनका तो वक़्त कटेगा

पर वक़्त को 
ये भी कहॉं मंज़ूर हुआ

वक़्त न कटा 
कटते रहे वो और हम

हर लम्हा भीगा हमारे लहू में
ना इल्म हुआ उन्हे, ना हुआ कोई ग़म।।

2 comments:

Unknown Wanderer said...

Kitna kuch sochte hain..par hota nahi..kitna kuch nahi socha hota..aur ho jata hai..

Makk said...

:-)

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