कुछ न कहा था हमने
ना की कुछ शिकायत
बस सुन रहे थे
हर पल में घुली वीरानियत
सोचा था कि शायद ऐसे ही सही
कुछ तो दर्द बँटेगा
अपना न सही
उनका तो वक़्त कटेगा
पर वक़्त को
ये भी कहॉं मंज़ूर हुआ
वक़्त न कटा
कटते रहे वो और हम
हर लम्हा भीगा हमारे लहू में
ना इल्म हुआ उन्हे, ना हुआ कोई ग़म।।
2 comments:
Kitna kuch sochte hain..par hota nahi..kitna kuch nahi socha hota..aur ho jata hai..
:-)
Post a Comment