Thursday, 21 October 2010

hum..


खरामा खरामा चलते रहे हम..
आहिस्ता आहिस्ता बढ़ते रहे हम..
सुनसान सी उन वादियों में..
यूँही हँसते और रोते रहे हम..

कुछ हमारी आँखें ही हम थी..
कुछ थी मौसम में नमी..
बस कुछ कहना ना चाहते थे हम किसी को..
कमबख्त  ये दिल था जो रो पड़ा..

4 comments:

Insignia said...

wow super!!

Makk said...

# Insignia

:)...thank you.

Unknown Wanderer said...

शायद कुछ न कहे ही सब कह दिया था कुछ यूँ
लव्जो की ज़रा भी ज़रूरत नहीं थी
हम में जो समाया था वह समझ गया
और कोई नहीं समझा तो ना सही

Makk said...

# unknown wanderer

Nice verses....Keep Smiling

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