वीरानियाँ
उन तल्ख़ रास्तों की
जिनपे हम चल रहे हैं और थे कभी
डसती ना थी हमें इस क़दर
ना हम तनहा थे और ना रहगुज़र
रोज़ थी ईद और दिवाली हर लम्हे में छुपी
ईख सी थी चखने में, कमबख्त आँखों की वो नमी
तभी दिखा इक पड़ाव एक मोड़ पे
ठंडी बयार सी लगी थी उस छोर पे
इल्म हुआ फ़ना इस उम्मीद के जोर में
मंजिल है यहाँ हमारी लगाने लगा था उस पहर
हुआ सन्निपात तभी हमारी तन्द्रा पे
कहा रास्ते ने हंस कर, चले?
अवाक, मूक बस चल दिए फिर उस डगर
हँसते अपनी समझ और उनकी समझदारी पर
सुन चुके थे उनसे यही चंद अल्फाज़ ए जिगर
थे, हैं और रहेंगे हम ता उम्र यायावर,
5 comments:
I read this so many times and i am still not done with it..
Very thoughtful..the transition and flow is damn beautiful.
inn alfaazo mein ek anokha jadu chipa hai
P.S.-मंजिल है यहाँ हमारी लगाने लगा था उस पहर
is it lagne laga tha or has different meaning?
:-) well expressed.
#unknown wanderer
you are being nice with me.
#aativas
thank you...:)
Very touching poem. Check my hindi poetry at http;/beloved-life.santosh.blogspot.com.
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